Friday, March 11, 2011

Meri Kalam se .....


इतना न मुझे तडपा की बर्दाश्त न कर पाऊँ मैं,

उसकी बेवफाई के फ़साने दोस्तों में गाऊँ मैं !
ए खुदा, उठा ले इस बेवफाई की महफ़िल से मुझे,
बस इतना करम कर, की कम से कम उस जहाँ में उसे पाऊँ मैं !!

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वो कह गए गम के साये में हम ही नहीं तन्हा,
इस जहाँ की भीड़ में ग़मगीन और भी हैं,
कोई जा के उन्हें भी बता दो, कि वो ही नहीं अकेले,
दुनिया में उनसे बड़के हसीन और भी हैं !! ...
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हमारी वफ़ा का उन्होंने कुछ ऐसा सिला दिया,
नसीम-ए-बेवफायी ने सारा मंजर हिला दिया !
हमारे ही साथ रोपा था उन्होंने ऐतबार का पोधा,
आज दरख़्त-इ-इतेमाद को ख़ाक में मिला दिया !!

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शाम ढलते ही अब, मैकदों का नजारा करते हैं,
डुबा देने को सारे गम, पैमानों का सहारा करते हैं !
खुदगर्ज़ दिमाग ने तो छोड़ दिया है उम्मीदों का दामन, पर
दिल-ए-कमबख्त की खातिर, हम आज भी उन्हें पुकारा करते हैं !!
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कुछ इस तरह से शुरू होती है अपनी शाम,
बैठ के यारों के साथ, छलकाते है ज़ाम !
फिर डूब जाते है तन्हाइयो की गहराइयो में,
और बहाते हैं अश्क शब् भर, याद करके तेरा ही नाम !!

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महफ़िल-ए-तन्हाई में, तनहा तू ही नहीं,
तेरे खाकसार हम-कदम और भी हैं !
नाम-ए-मोहोब्बत तेरा जरुर जुदा ही होगा,
निगाहे-ए-दर्द यहाँ नम और भी हैं !!
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क्यों फैलाते हो रक्त बिंदु हर कलि पे पाती-पाती पर,
क्यों खीच रहे हो लकीरे धरती माता की छाती पर !
सब कौमे मिल के साथ रहो, आपस में भाई भाई कहो,
फिर देखो कैसे दिखता है स्वर्ग, इसी लोक की माटी पर !!
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1 comment:

  1. waah shayar Manku waah... itni gehraayeen hai tumhaare shabdon mein, padh ke achha laga...

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