Friday, March 11, 2011
Meri Kalam se .....
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वो कह गए गम के साये में हम ही नहीं तन्हा,
इस जहाँ की भीड़ में ग़मगीन और भी हैं,
कोई जा के उन्हें भी बता दो, कि वो ही नहीं अकेले, ------------------------------------------
हमारी वफ़ा का उन्होंने कुछ ऐसा सिला दिया,
नसीम-ए-बेवफायी ने सारा मंजर हिला दिया !
हमारे ही साथ रोपा था उन्होंने ऐतबार का पोधा,
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शाम ढलते ही अब, मैकदों का नजारा करते हैं,
डुबा देने को सारे गम, पैमानों का सहारा करते हैं !
खुदगर्ज़ दिमाग ने तो छोड़ दिया है उम्मीदों का दामन, पर ------------------------------------------
कुछ इस तरह से शुरू होती है अपनी शाम,
बैठ के यारों के साथ, छलकाते है ज़ाम !
फिर डूब जाते है तन्हाइयो की गहराइयो में,
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महफ़िल-ए-तन्हाई में, तनहा तू ही नहीं,
तेरे खाकसार हम-कदम और भी हैं !
नाम-ए-मोहोब्बत तेरा जरुर जुदा ही होगा, ------------------------------------------
क्यों फैलाते हो रक्त बिंदु हर कलि पे पाती-पाती पर,
क्यों खीच रहे हो लकीरे धरती माता की छाती पर !
सब कौमे मिल के साथ रहो, आपस में भाई भाई कहो, ------------------------------------------
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waah shayar Manku waah... itni gehraayeen hai tumhaare shabdon mein, padh ke achha laga...
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